Wednesday 9 November 2011

पक्षी और चौपाये सब मार-मार कर खाये (भजन )

यह भजन मांसाहारियों के विषय में श्री कवि नत्थासिंह ने बनाया है । इसे श्री बेगराज जी आर्योपदेशक बड़े झूम झूम कर गाते हैं ।

प्राणियों के शत्रु मांसाहारी मनुष्य


पक्षी और चौपाये सब मार-मार कर खाये,
फिर भी हाथ मार कर छाती पर इन्सान कहाये
लाज नहीं आये ।



इसकी जबान के चस्के नहीं ईश्वर के भी बसके,
दया धर्म की बांध के मुशकें रख दी इसने कसके,
सुन भाई सुन, कुछ तो सुन, पाप कमाये छोड़ के पुण्य
बन के मर्द बहादुरी अपनी मुर्गी पर दिखलाये
लाज नहीं आये ॥१॥
पृष्ठ २५
यह नर था अजब निराला, रुतबा था इसका आला,
प्रभु ने इसको भेजा था, सब जीवों का रखवाला,
सुन भाई सुन, कुछ तो सुन, तूने धारे ऐसे गुण,
अपने से कमजोर बशर का, खून तलक पी जाये,
लाज नहीं आये ॥२॥


यह समझदार है इतना क्या बतलाऊं कितना,
मजहब की खातिर लड़ने को, नित्य नया जगाये फितना,
सुन भाई सुन, कुछ तो सुन, तेरी बदौलत अकल के घुण,
अल्लाह, ईश्वर वाहगुरु तीनों आपस में टकराये,
लाज नहीं आये ॥३॥


तूने तो जी भर खाया, इतना ख्याल न आया,
कई रोज से भूखा तेरा, बैठा है हमसाया,
सुन भाई सुन, कुछ तो सुन, रेशम पहने तू चुन चुन,
पास तेरे निर्धन का बालक, कफन बिना जल जाये,
लाज नहीं आये ॥४॥

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